भ्रष्टाचार हो या ,
ईमानदारी हो ,
हम जो बीज बोते है ,
वही उगता है ....
बस समज ने में साल निकल जाता है .....
अन्ना ने सोचा चलो लड़ते है ,
घपलो की खेती में सुनामी लाते है
सुखराम जी का बी एक फरमान निकला ,
चलो ..अन्ना के साथ जंतर मंतर ...
न कोई हथियार ,न फत्हर......
उपोषण पे तो बैटना है ..
घपलो के बाज़ार में ....
ईमानदारी की स्थापना करना है ....
सत्य की पुकार थी ...
लड़ने का जूनून था ..
काला पैसा लाना है लाना है........
सुखराम जी का फोन चिल्ला उठा....
हेल्लो कौन बोल रहा है.........???
सर मै...
गाववालो को फसाया है ...
कोरे कागज़ पर अंगुता बी लगवाया है ....
तिलिस्मी मुस्कान के साथ ....
सुखराम जी बोले..........
अभी हम भ्रष्टाचार के खिलाप ...
मोर्चे में है........
सामने घूरते दादा जी बोले........
"सत्यमेव जयते "
सिर्फ अशोक में माथे पर लिखा है..........
भ्रष्टाचार का चेहरा नहीं होता.....
वश या वर्ग बी नहीं होता.....
जाता बी नहीं उस्सका "अस्तित्व "........
वह सर्वकालीन है ,सर्व स्तलिय है ,सार्वजनीन है .....
अगर हम खुद को जान ले......
बदल ले..........
दुसरे को हम खुद में ''''
देख पाए तो ...........
भ्रष्टाचार की जीत "नामुमकिन " है.........
Excellent thought nd pix :)
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